और यहॉं पूजा जाता हे रावण । लेकिन क्यों।।

 त्रिलोक विजेता, रावण संहिता के रचयिता, भविष्य विज्ञान के वेत्ता, अद्वितीय शिव भक्त, विश्ररवा नन्दन, ब्रम्हाजी के वंशज, ‘रक्ष’ संस्कृति और समाज की स्थापना करने वाला, ज्योतिष शास्त्र का प्रखर ज्ञाता, प्रकाण्ड पण्डित, उद्भट राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी योद्धा,  महाप्रतापी, अत्यन्त बलशाली, महाज्ञानी  लकांधिपति लंकेश्वर रावण को उसके अहंकार के चलते दशहरे के दिन जहां देश मे अधिकतर जगहों पर अहंकार का प्रतीक मान दहन किया जाता है वही कुछेक हिस्सो मे रावण्‍ा को पूजा और सम्मान भी दिया जाता है, वे रावण की जन्मस्थली कर्मस्थली के रूप मे स्‍थानीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है तो आइये जानते हैं उन अद्धभुत जगहों के बारे मे जहां लंकापति लंकेश्वर रावण पूजे जाते है और क्यों।।


बिसरख-- नोएडा के पास बिसरख गॉंव हे जिसे वहॉं के रहवासी रावण की जन्मस्थली मानते है वहां रावण का दहन नही वरन् पूजन किया जाता है

। बिसरख का नाम रावण के पिता विश्रवा के नाम पर पड़ा. उन्होंने यहां पर स्वयंभू शिवलिंग की खोज की थी।।
बैजनाथ—हिमाचल प्रदेश के कागॅडा जिले के ग्राम बैजनाथ को रावण की तपस्या स्थली माना जाता है यहां रावण ने सैकडो वर्षो तपस्या की थी यहां रावण दहन नही वरन् दशहरे को अवकाश रख उत्सव मनाया जाता है ।।
इलाहाबाद – लकांपति रावण की शौर्य स्थली मानी जाती है भारद्वाज आश्रम इलाहाबाद। यहा रावण के पूरे परिवार को अलग अलग रथो पर सवार करवा शोभा यात्रा के रूप मे नगर भ्रमण करवा
ते है और लोग फूलमाला पहना पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत करते है यहॉं भी रावण का दहन नही बल्कि बारात के रूप मे शोभा यात्रा निकाल सम्मान किया जाता है ।।
झांझोड—राजस्थान के उदयपुर के ग्राम झाझोड रावण की अमरत्व स्थली हे यहॉं पर ही भगवान शिव ने रावण की नाभि मे अमृत कुण्ड स्थापित किया था रावण ने भी यहां एक मन्दिर की स्थापना की थी जो आज भी कमलनाथ महादेव मन्दिर के नाम से जाना जाता हे यहां शिवजी की पूजा से पहले रावण की पूजा की जाती है ।।
बैरासकुंड -- उत्‍तराखंड के दशौली इलाके में चमोली जनपद के घाट ब्‍लाक स्थित बैरासकुंड में भगवान शिव का मंदिर है। मान्‍यता है कि यहीं  रावण ने दस हजार साल तक तपस्‍या कर शिवजी को प्रसन्न किया था। यहां पर मंदिर में भगवान शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है, रावण ने यही पर नाड़ी विज्ञान और शिव स्त्रोत की रचना की थी। इस क्षेत्र का नाम "दशोली" रावण के नाम दशानन पर पड़ा। दशोली दशानन का अपभ्रंश है। । यहां आज भी रावण शिला और यज्ञ कुंड है।।
जोधपुर -- मान्यता है कि मंदोदरी का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले में हुआ था । वहां पर आज भी महाराजा रावणजी को पूजा जाता है वहा आज भी रावण की चावरी है, जिस जगह पर रावण का विवाह हुआ था ।।
मन्दसौर— एक मान्यता के अनुसार मध्य प्रदेश का ये शहर रावण की ससुराल मानी जाती है यहां भी रावण का मंदिर है और नामदेव समाज की महिलाऍ आज भी रावण के मन्दिर के सामने से घूघँट निकाल कर आती जाती है यहा रावण दामाद रूप मे मान पाता है ।।

ये तो रावण की जिन्दगी के पहलुओ से सम्बन्धित स्थल है जहॉं रावण का दहन नही बल्कि मान किया जाता है इसके अलावा भी देश के कई हिस्सो मे जगह जगह पर रावण के मन्दिर बने हूए हे उनमे से कुछ प्रसिद्ध इस प्रकार है -

अलवर – राजस्थान के अलवर स्थित पार्श्वोनाथ मन्दिर में रावण की मूर्ति स्थापित है कहा जाता है की भगवान पार्श्व‍नाथ का ये मन्दिर रावण द्वारा बनवाया गया था।।
कानपुर – यहॉं रावण का मन्दिर है जो साल मे सिर्फ एक दिन दशहरे को ही खोला जाता है ।।
ककीनाडा – आन्ध्रापदेश के काकीनाडा मे स्‍िथत रावण मन्दिर मे बहुत ही विशाल शिवल्रिग स्थापित है इसकी पूजा देखभाल स्थानीय मछुआरो द्वारा की जाती है ।।
मन्डोर—राजस्थान के जोधपुर के ग्राम मन्डोर मे भी रावण की पूजा यहॉ रहने वाले मुद्गल गोत्रीय ब्राम्हिणो द्वारा की जाती है वे स्वंय को रावण का वशंज मानते है तथा दशहरे को पिण्ड दान करते है ।।
गढ़चिरौली- यहां गोंड जनजाति समुदाय द्वारा रावण की उनके पुत्रों सहित पूजा की जाती है. इस जनजाति का मत है कि रावण बुरा इंसान नहीं था और उसने सीता माता को बदनाम भी नहीं होने दिया इसीलिए महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में रावण को उसके पुत्रों सहित पूजा जाता है।
विदिशा -- रावण की पूजा में सबसे अनूठा है विदिशा का नटेरन, इसके रावन गांव में हर शुभ काम की शुरुआत रावण के नाम से ही की जाती है इस गांव के तो अराध्य हैं रावण बाबा, यहां रावण का मंदिर है जिसमें लेटी मुद्रा में है रावण । यूं तो भारत वर्ष में कई जगह दशहरे के दिन रावण पूजा जाता है  लेकिन विदिशा के रावन गांव में लोग रोजाना ही रावण बाबा को पूजते हैं... इसलिए ही इसे रावण की पूजा में अनूठा कहा है ।
इन्दौर—मघ्यदप्रदेश के इन्दौर शहर के परदेशी पुरा और सुखिलया क्षैत्र मे भी रावण की पूजा दशहरे को की जाती है सुखलिया में रावण का छोटा सा मन्दिर भी है और परदेशीपुरा मे गौहर परिवार द्वारा विशाल मन्दिर बनवाया जा रहा है ।।

शिव तांडव स्तोत्र और अरुण संहिता ( लाल किताब) के रचयिता ‘लंकेश्वर’ रावण शिव का परम भक्त तो था ही उसने यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर दिया था। सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने के उद्देश्य से  रावण ने आर्यों की ‘यक्ष’ संस्कृति से अलग सभी की रक्षा करने के लिए ‘रक्ष’ संस्कृति की स्थापना की थी। इसी ‘रक्ष’ समाज के लोग आगे चलकर राक्षस कहलाए , वहीं रावण की वंशावली के अनुसार वह पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा ऋषि का पुत्र ब्रम्हाजी का वंशज था, पुलस्त्य ऋषि ब्रह्माजी के मन्वन्तर पुत्र थे।

बोलो लकांधिपति राजाधिराज रावण की जय ।।

यहां बिकता है रावण.... देखिए क्लिक कर यहां 

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यहां पूजा जाता रावण.... देखिए क्लिक कर यहां 

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Comments

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी भिया आपने

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