सट्टा बजार और उदयपुर ने ढहा दिया संजय शुक्ला का किला। एक से पांच लाख के डिफरेंस की चल रही बातें।
इन्दौर - अस्सी के दशक में इन्दौर के चुनावी समर में एक उम्मीदवार उतरा था नरेन्द्र जैन "आलीजॉ", स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पूरे इन्दौर को हिलाके रख दिया था उसने, .... अखबारों के चुनावी पृष्ठ पर पार्टियो के अधिकृत उम्मीदवारों से अधिक हाईलाइट वह रहता था एक पैसे का विज्ञापन नही दिया था उसने ....फिर भी मजबूरी थी अखबारों की, "जनता की डिमांड" आजकल की टीआरपी की तरह ....जबकी वह खुद कहीं प्रचार के लिए नही जाता था बस अपने घर की तीसरी मंजिल की बालकनी पर ही खड़े होकर सामने सड़क पर इकठ्ठा हुई जनता से वोट की अपील करता था वह भी सिर्फ आधे घंटे रात नौ से साढ़े नौ बजे फिक्स टाईम,..... हजारो की तादात में इन्दौरी जनता उमड़ पडती, जो एक बार उसको सुनने जाता फिर रोजाना जाता और "अपने साथ दस बीस" को और ले जाता.... एक तरफा जलवा चला था उसका माहौल बन गया था...... हार जीत की बात क्या रही ये तो जो लोग आलीजॉ को जानतें है उन्हे याद है, बाकी के लिए सस्पेंस ही रहने दो .... और करीब तीन साल पहले संसदीय चुनाव में बीजेपी ने भारी "ऊंहापोह" के बाद इंजिनियर शंकर लालवानी को सासंद प्रत्याशी बनाया था, बीजेपी की इस घोषणा के बाद तब कांग्रेस के बहुत पहले से घोषित "लक्ष्मी पुत्र नहीं बल्कि धन कुबेर" प्रत्याशी नें दिवाली मना ली थी बीजेपी द्वारा मजबूरी में सर्वसहमति के रूप में उतारे कमजोर प्रत्याशी को अपने सामने मानते हुए्......परंतु परिणाम अप्रत्याशित, बीजेपी प्रत्याशी की रिकार्ड तोड़ जीत का रहा था.....
बीजेपी की और से पुष्यमित्र भार्गव शासकीय अधिवक्ता को इस्तीफा दिला "एन टाईम" पर मतलब अठारह दिन पहले मैदान में उतारा गया इस हिसाब से कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला ने चुनाव प्रचार में बहुत बढ़त बना ली चूंकि वे विधायक भी हे और कोरोना की दूसरी लहर में "जमीन" के साथ साथ "आमजन" से भी जूड़े रहे त़ो अपने जनसम्पर्क में वे अपनी उपलब्धियो के साथ साथ, सोचे गये काम कतिपय प्रशासनिक अड़गो के कारण न कर पाने की मजबूरियों को ही गिनाते रहे .... मीडिया के जरिए उनकी एक ही बात रिपीट होने लगी इसका फायदा विपक्षी दल ने "कटाक्ष" बतौर उठाया और उनके वक्तव्यों बयानों को मनोविनोद का स्वरूप दे दिया, मजबूरन उन्हे विपक्षी दल और उसके प्रत्याशी पर आरोप प्रत्यारोप के हास्यास्पद शब्द बाण चलाने पड़े और और यहीं से नरेन्द्र जैन आलीजॉ फेम प्रचार की शुरूआत हो गई जिसकी झलक इन्दौर प्रेस क्लब के परम्परागत गरिमामय कार्यक्रम "आमने सामनें" में भरपूर दिखाई दी, ...यहीं नहीं अपने लक्ष्मी पुत्र होने ( जिसकी वे कई सार्वजनिक मंचो से स्वत ही बारम्बार अभिव्यक्ति करते रहते है) के दंभ स्वरूप स्वंय के धनबल से बड़बोली घोषणा का पिटारा खोला .....आखिर एक साल में रोजाना क्या क्या बोलते मजबूरी जो हो गई "सेम टू सेम" बातें "रिपीट" करते करते, तो ये नये बोलवचन आमजन भी चाव से सुन उस पर धीर-गंभीर मगर "वाचाल" सी बोले तो मजे लेने की टिप्पणी अपने अपने ठियो पर करने लगे,
इसी बीच स्थानीय अखबारों की खबर के अनुसार इन्दौरी सट्टा बाजार ने प्रत्याशियो की जीत हार के भाव खोल दिये .....ज्ञात रहे की इन्दौर का सट्टा बाजार हर "डिपार्टमेंट" से कई गुना ज्यादा विश्वसनीय माना जाता है ......यहां सड़क पर आने जाने वाली गाड़ियो के नम्बर, उनके लेफ्ट साईट, राइट साइट टर्न लेने से लगाकर बारिश के हालचाल (पानी पतंरे) सहित तमाम स्थानीय, प्रादेशिक, नेशनल तथा इन्टरनेशनल हरकतो, गतिविधियों और इवेंट पर सट्टे के भाव खोल "लगाया और खाया जाता है"..... सटीक एकदम.।।।.....तो सट्टा बजार में बीजेपी प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव के भाव चार आने और कांग्रेसी प्रत्याशी के भाव चार रूपये खुले (याद दिला दू कि नरेन्द्र जैन आलीजॉ के भाव आठ दस रूपये उस वक्त थे जो आज के दौर मे चार आठ सौ के आसपास हो सकते)
निश्चित तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चिंता के साथ चिंतनीय स्थिती बन गई, ....कारण..... अब भाव के साथ हारजीत के आंकडो पर भी बोली लगनी शुरु हो गई ...अपने अपने गणित अपने अपने ज्ञान के हिसाब से "इस फील्ड के एक्सपर्ट" कोई एक लाख से तो कोई पांच लाख से हारजीत बता रहा, संजय शुक्ला के एक साल से सतत् चल रहे प्रचार में ये आशंका का "स्पीड ब्रेकर" इन्दौर सट्टा बजार ने खड़ा कर दिया, संजय शुक्ला शायद इसको पार करने की जुगत भिडा ही रहे होंगे की उदयपुर की दर्दनाक घटना घट गई और सोशल साइट्स के कारण आग की तरह पार्टी विशेष और राजस्थान की सरकार को टार्गेट बनाती सोशल मीडिया के तथाकथित विशेषज्ञो की विशेषज्ञ टीका टिप्पणी के साथ "फोक्टे फारवर्डियों". की कृपा से इन्दौर सहित पूरे देश में फैल गई उदयपुर की घटना ने निश्चित रूप से चुनाव पर भी असर डाला और शायद संजय शुक्ला की जीत की राह में बेरीकेट ही लगा दिया, अब इस बेरीकेट को पार पाना बहुत ही मुश्किल क्योंकि सोशल साइट्स के जरिये जिस तरह का रंग दे उसे फैलाया गया ( एक तरह से कुछ हद तक सही भी हो सकता ) उससे आम जनमानस और इन्दौर में नगरीय निकाय चुनाव के चलते मतदाता के मन में ......एक दल विशेष के प्रति आक्रोश और एक के प्रति लगाव समर्थन का भाव और बढ़ा गया ....उपर से इस आक्रोश को तड़का जस्टिस पारदीवाला की नुपुर शर्मा की याचिका पर की गई मौखिक टिप्पणी ने लगा दिया, जैसै आग में घी नहीं बल्कि पेट्रोल.... उसके कारण ही आकंडा पांच लाख तक पहुंच गया क्योंकि जस्टिस पारदीवाला नें अपनी मौखिक टिपप्णी को उदयपुर की घटना का संदर्भ ज़ो दिया ...
खैर बात इन्दौर के महापौर के चुनाव की हो रही तो कांग्रेस के संजय शुक्ला के भाग से छीका टूटने वाली मौजूदा राजनीतिक बात यह हो गई की हैद्राबादी नेता असुद्ददीन औवेसी की इन्दौर में प्रस्तावित सभा के साथ ही उसका इन्दौर दौरा भी टल गया नहीं तो वो भी अपनी आदतानुसार कोई न कोइ कान्ट्रोवर्सियल स्टेटमेंट दे देता ज़ो कांग्रेस पार्टी के लिए नया सिरदर्द साबित होता वेसे वो भोपाल में अपने बोलवचनों में प्रदेश कांग्रेस आध्यक्ष को खूब खरीखोटी सुना गया पर उसकी हवा इन्दौर की राजनीति को नही लगी ।
लेकिन बाकी उक्त दोनो बातों के बाद सजय शुक्ला की जीत तो उतनी आसान नहीं है परन्तु वर्तमान समय में राजनीतिक चुनाव भी पूर्णत अनिश्चितता लिये अप्रत्याशित उलटफेर वाले होते जा रहे है .....मंझे हुए राजनीतिक पंड़ितो के साथ ही अच्छे अच्छे कयासबाजों और आंकलनकर्ताओ को फेल कर देते है ये मतदाता...... इसलिए संजय शुक्ला को इन स्पीड ब्रेकर और बेरिगेट से नाउम्मीद ना होते कुछ अनोखा होने की उम्मीद कायम रखनी चाहिए यह सोचते हुए कि "उस जीत से ज्यादा चर्चे तो इस हार के होंगे।"

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