फर्जी पत्रकार जैसा कुछ नहीं होता, या तो पत्रकार होता है या पत्रकार नहीं होता है, बस।
फर्जी पत्रकारों पर हो रही चर्चा इन दिनों सुर्खियों में है तो बता दूं कि ऐसा कुछ होता ही नहीं है, मतलब फर्जी पत्रकार नहीं होते हैं या तो पत्रकार होते हैं, जी हां सिर्फ और सिर्फ पत्रकार होते हैं या पत्रकार नहीं होते हैं बस, ये फर्जी शब्द के फर्जीवाड़े का पत्रकारों के साथ कब, क्यों और किसने घालमेल कर दिया रामजाने, अभी मुद्दा सुर्खियों में है तो बात लाजिमी है।
पत्रकारों के साथ बिलावजह जुड़ गया यह फर्जी शब्द मेरी समझ से उनके कर्मो का फल है, मेरे सभी सम्मानीय साथियों को अच्छी तरह से याद होगा कि पहले इस तरह के कर्म को "पीत-पत्रकारिता" की संज्ञा दी गई थी परन्तु कालांतर में उनके उस पीत कर्म को विलोपित कर कतिपय "दुर्जनों" द्वारा उन्हें ही फर्जी पत्रकार शब्द से नवाजा गया और हां ये वे ही दुर्जन है जो उन्हें पीतपत्रकारिता हेतु अवसर उपलब्ध करवाते रहते है।
बात इन्दौर की करें तो इन्दौर में पीत पत्रकारिता की शुरुआत के संदर्भ में मेरी याददाश्त के अनुसार इन्दौर के वरिष्ठ और सम्मानीय पत्रकारों के बीच इसका सबसे चर्चित मामला सत्तर के दशक में सुर्खियों में आया जब इन्दौर से ही प्रकाशित एक दैनिक अखबार जो कि कई दशकों तक भोपाल और दिल्ली की सरकारों में रद्दोबदल का माद्दा रखता था के सिटी रिपोर्टर द्वारा आयकर विभाग से सात लाख रुपए के लेनदेन का था, (तबके सात लाख की वर्तमान स्थिति का अंदाजा आप लगावें,) चलती चर्चा में उन रूपयों के संदर्भ सहित सराफे की दुकान का जिक्र भी होने लगा, बाद में उन्हें उस अखबार ने कुछ और लाख का कम्पनसेशन न्यायालय आदेशानुसार दे अलग कर दिया, तब ही से इन्दौर की पत्रकारिता में पीत पत्रकारिता का जन्म हुआ कह सकते हैं।
सनद रहे कि तब भी उस वक्त के फील्ड पत्रकारों ने जो कि कालांतर में इन्दौर ही नहीं देश के महानगरों से प्रकाशित होने वाले विभिन्न प्रतिष्ठित अखबारों में सम्पादक के रूप में सम्मानित पत्रकारिता करते इस पावन कर्मक्षेत्र की बुलंदियों को छूने लगे थे, उन्होंने स्व आचार संहिता बनाई थी एक छोटा सा उदाहरण उन्ही सम्मानितों से सुना मै यहां बताना चाहूँगा कि उस वक्त कुछ अवैध मादक पदार्थों के व्यवसाय में लिप्त असामाजिक तत्वों द्वारा उन्हें प्रलोभन देकर ये कहा गया था कि हम पर पुलिस कार्रवाई और उसमें हमारे पास से जब्त किए मादक पदार्थों जैसे एलएसडी, स्मैक, ब्राउन शुगर (तब यही प्रचलित थी) की खबर के साथ आप स्थान विशेष का उल्लेख जरूर किजीए इसके पीछे की उनकी मंशा शायद उनके व्यवसाय स्थल के परोक्ष रूप से प्रचार की थी, इसे तब इन्दौर शहर से प्रकाशित सभी अखबारों के समस्त पत्रकारों द्वारा मिलकर स्व आचार संहिता बना नहीं माना और उनके प्रलोभन को ठुकरा कर सिर्फ उन असामाजिक तत्वों के नाम उजागर करते पुलिस कार्रवाई को अपनी रिपोर्ट में शामिल कर खबर के रूप में प्रकाशित किया जाने लगा यही नहीं इस तरह ही विभिन्न विषयों पर स्वंआचारसंहिता का पालन सभी ने एक जुट होकर लम्बे अर्से तक किया बाद में उन सम्मानितो के साथ साथ वह पवित्र परंपरा भी दम तोड़ गई।
तो मुद्दे की बात पर आते हुए यही कहना चाहूंगा कि पीतपत्रकारिता करने वालों को ही सौदा नहीं पटने पर उजागर होने के कारण फर्जी पत्रकार कहा जाने लगा जो कि गलत है, क्योंकि इससे समस्त पत्रकारों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है, तो हम अपनी गलती को स्वयं सुधार पत्रकारों के साथ जोड़ दिए गए इस फर्जी शब्द को भविष्य के अपने स्वयं के लेखन में विलोपित करें तथा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इसके प्रयोग को रोकते हुए पत्रकारिता के पवित्र कर्म को माँ सरस्वती की आराधना आशीर्वाद मान तपस्या रूप में रत पत्रकारों के गौरव अभिमान की रक्षा करें और साथ साथ स्व आचार संहिता बनाने का प्रयास करते ऐसे लोगों को जो पत्रकार नहीं होते हुए भी इस क्षेत्र को दूषित कर रहे की पहचान कर उन्हें कठोर दण्ड के साथ इस क्षेत्र से निकाले, और हां ऐसे लोगों को ब्लेकमेलर, माफिया, बदमाश, वसूलीबाज अथवा ऐसे ही किसी शब्द से सम्बोधित करे पत्रकार के साथ फर्जी शब्द लगाकर नहीं।
इसी मुद्दे के कारण ध्यान इस बात का भी दिलाना चाहूंगा कि आरएनआई रजिस्टर्ड समाचार पत्र के सम्पादक प्रोटोकॉल और बाय लाॅ अनुसार एक ही सम्मान के अधिकारी है चाहे वह किसी जिले के छोटे से ग्राम से प्रकाशित होकर वहीं बटंने वाला अखबार हो अथवा देश के कई राज्यों से दसियों संस्करण के रूप में प्रकाशित होता अखबार हो, वो तो ये नेतानगरी और कार्पोरेट, ब्यूरोक्रेसी ही समयानुसार औकात देख छोटा बड़ा मानते और उसके अनुसार सम्मान देते हैं, वरना सब एक बराबर।
बात खत्म करने के पहले बता दूं कि बात का मुद्दा अपने यहां सुर्खियां बन रहा फर्जी पत्रकार शब्द था इसलिए फोकस उस पर ही विदेशी मिडिया के प्रतिनिधियों को इस चर्चा में शामिल नहीं किया है, और फर्जी शब्द के संदर्भ से पीत पत्रकारिता पर अभी बस कुछ ही बात कही है अगले सप्ताह विस्तृत रूप से पीत पत्रकारिता के स्वरूप, किस तरह पीत पत्रकारिता को अंजाम दिया जाता और वे कौन है जो पीत पत्रकारिता करते या पीत पत्रकारिता करने पर विवश करते, पर डिटेल में बात करते हैं। तो मिलते हैं अगले सप्ताह फिर सप्ताह की बात आनन्द पुरोहित के साथ में।
शातिर चोर हैरान पुलिस.... देखिए विडियो.....👇


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