जिन्दगी को फिर बंधक हो जीने के डर से बचाईये..... "बेबस, लाचार, बेसहारा, मजबूर, आम अवाम की आवाज बन जाईये "
एक आव्हान.. पत्रकारों, वकीलों, बुद्धिजीवियों जैसे सभी प्रबुद्ध वर्ग के साथ समस्त जागरूक नागरिकों से.....
सरकार ने एक सितम्बर से स्कूलों को खोलने का फैसला लिया है... वहीं दुनिया भर के चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार सितम्बर, जी हां सितम्बर.. में ही कोरोना की तीसरी लहर की आशंका है.... और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भी बच्चों पर पडना बताया जा रहा है।
विगत पोने दो साल से हम इस भयंकर आपदा से "जिन्दगी जीने के लिए" संघर्षरत है..... हर व्यक्ति आशंकित है और अपने तह इससे बचने बचाने की भरसक कोशिश कर रहा है... सरकारी कर्मचारी, प्रशासनिक अमला, नियम कायदे कानून के साथ या उसकी अवहेलना करते हुए भी इस आपदा से अपनी और अपनों सहित सबकी, सुरक्षा के इंतजाम में... अपनी जान की बाजी लगाते हुए जी जान से लगा हुआ है.... परन्तु नेताओं का एक बहुत ही बड़ा वर्ग, अपनी गैर जिम्मेदार, लापरवाही पूर्ण हरकतों से, चाहे वह रैली, सभा, जुलूस, धरना, प्रदर्शन, आंदोलन या राजनैतिक अथवा प्रशासनिक निर्णय हो, के जरिए...... कई बार, जी हां कितनी ही बार, बल्कि यूं कहे कि, हर बार.. बारम्बार... बार बार .... आम अवाम को इस बीमारी के फैलने के प्रति आशंकित करते, उनमें कोविड संक्रमण के फैलने के डर को और बढ़ाते हुए, नेताओं के प्रति ही आक्रोशित, क्रोधित कर रहा है.... आम जन में इन नेताओं की कोविड गाईडलाइन और नियमों को तोड़ने वाली गैर जिम्मेदार, लापरवाही पूर्ण हरकतों के कारण इनके प्रति गुस्सा भर गया है, पर वह बेबस, लाचार, मजबूर है और बड़ी आशा भरी निगाहों से शहर के प्रबुद्ध वर्ग जिन्हें पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, वकीलों, जागरूक नागरिकों के रूप में पहचान दे दी गई है, की और देख रहा है,..... कि शायद ये सभी, कम से कम एक बार तो एक जुट होकर सरकार के इस निर्णय के खिलाफ आवाज उठाकर उसका पूरजोर विरोध कर इसे एक माह के लिए स्थगित करवा दे,...... सभी स्कूल एक सितम्बर नही बल्कि एक अक्टूबर से खोलने के लिए सरकार को मजबूर करें,...... तो मेरा भी इन सक्षम प्रबुद्ध जनों, पत्रकारों, वकीलों, बुद्धिजीवियों और जागरूक नागरिकों से, यही आव्हान निवेदन है कि, इन आमजनों में अपनी पूर्व निर्धारित छबि को बरकरार रखते उनके लिए आशा और उम्मीद की किरण ही न बनें, बल्कि उनका विश्वास बने......
अपना बहुत कुछ और बहुत से अपनों को खोया है इन पौने दो साल में हमने ....
वे जिनसे हम नित मार्गदर्शन लेते थे...... अब उनके बताए मार्ग पर चलने की बात करना पड रही है हमें,......
जिनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे उन्हें कांधे पर लेकर जाना पड़ा हैं हमें,.....
जिनके साथ जिंदगी के दर्द को बिंदास ठहाकों और हसीं के साथ भूल जाते थे, उन्ही की यादों में उन पलो को याद कर, उनके लिए अकेले रो रहे हैं हम......
अगर ये नेता इन शिक्षा माफियाओं के दबाव में, या इनसे अपनी किसी स्वार्थ पूर्ति के पूर्ण होने पर इनके प्रति इस भाव संवेदना के साथ, कि इनका भी जीवन यापन मुश्किल हो रहा 1 सितम्बर का यह निर्णय ले रहे हैं, तो सनद रह यह जान ले, कि इन्होंने छात्रों से अपने हक का एक भी पैसा नहीं छोड़ा है बल्कि कहीं-कहीं तो उससे कई गुना ज्यादा रंगदारी से वसूला गया है हां कुछेक जिनका जमीर जिंदा है वे अपवाद भी है परंतु अधिकांशतः तो शिक्षा माफिया श्रेणी में ही है तो उनके प्रति व्यावसायिक संवेदना छोड़ अभिभावकों पालकों का न सही बच्चों के जीवन की रक्षा के प्रति सजग सतर्क रहो और इसे एक माह के लिए स्थगित करो।
हमने इस सेकंड वेव में राजनैताओ की ऐसी ही स्वार्थी हरकतो पर अपनी लापरवाही, सुप्त गैरजिम्मेदाराना रवैये के कारण कई बड़े बुजुर्गों के रूप में इतिहास के साथ ही कई अजीज से भी अजीज संगी साथियों रूपी वर्त्तमान को खोया है... अब हमें अपने बच्चों के रूप में देश का भविष्य नहीं खोना है, मेरी तरह मजबूर न बनिये ..... उठिये और आवाज उठाईये।


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