बी आर चोपड़ा की 'अफसाना' से चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में फिल्मी दुनिया में प्रवेश कर 1953 में बिमल रॉय की 'दो बीघा जमीन' से काॅमिक रोल निभाने वाले सूरमा भोपाली ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
मध्यप्रदेश के दतिया में 29 मार्च, 1939 को जन्मे अभिनेता जगदीप ने बाल फिल्मों के साथ अभिनय की दुनिया में प्रवेश किया था। 1953 में भारतीय फिल्म उद्योग के स्तम्भों में से एक बिमल राॅय की सुपर डुपर हिट फिल्म "दो बीघा जमीन" और उसी वर्ष (1953) "पापी" में भी अभिनय कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा दिया था। हास्य अभिनेता के तौर पर स्थापित हो चुके अभिनेता जगदीप ने 400 के करीब फिल्मों में अभिनय किया था, उन्हें कई फिल्मों में उनकी यादगार भूमिकाओं के लिए याद किया जायेगा परन्तु सबसे ज्यादा शोहरत उन्हें शोले फिल्म में 'सूरमा भोपाली' की भूमिका से ही मिली थी और वो ही फिल्मी भूमिका उनकी पहचान बन गई ।
भोपाल के सेफिया कालेज के नाहर सिंह बघेल जिन्हें लोग काले मामा के नाम से भी पुकारते थे कि उस वक्त की स्टाइल से प्रेरित था सूरमा भोपाली का किरदार क्योंकि वे आंखों में पतला सूरमा लगाने के कारण पूरे भोपाल में सूरमा भोपाली के रूप में पहचाने जाते थे। उस किरदार को सलीम जावेद ने शब्दों में ढाला और जगदीप साहब ने पर्दे पर उतार पूरी दुनिया में भोपालियो के साथ साथ भोपाल को फेमस कर दिया। ब्रिटिश इंडिया के दतिया सेंट्रल प्रोविंग में (अब मध्य प्रदेश) 29 मार्च 1939 को जन्में अभिनेता जगदीप ने बुधवार को 81 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक जाफरी था बॉलीवुड एक्टर जावेद जाफरी जगदीप के बेटे हैं।
जगदीप ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में बी आर चोपड़ा की फिल्म 'अफसाना' से की थी। इसके बाद चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में ही उन्होंने 'लैला मजनूं' में भी काम किया और कॉमिक रोल बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा जमीन' से करने शुरू किए थे।जगदीप साहब की आखिरी फिल्म 2004 में रिलीज "किस किस की किस्मत" थी।
जिन्दादिल और जिन्दगी को अपने ही अंदाज में जीने वाले जगदीप ने जींद में एक सरकारी संगठन के कार्यक्रम में शोले पर टिप्पणी करते हुए आज की फिल्मों और पुरानी फिल्मों तथा फिल्मकारो के बारे में कुछ इन अल्फाजो में अपना दर्द बयां किया था बात सन 2013 की है ..... जगदीप ने कहा था कि जब उन्होंने पहली बार ‘शोले’ देखी तब वह उन्हें काफी खराब फिल्म लगी थी। लेकिन बाद में इस फिल्म ने कामयाबी के सारे रिकार्ड तोड़ डाले, जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी। यह कमाल तकनीकी का था। उन्होंने कहा था कि यह वह दौर था, जब महबूब खान, गुरुदत, वी. शांतराम जैसे निर्माता एवं निदेशक खुद एक चैनल होते थे। वह लोगों के लिए काफी स्वस्थ फिल्में बनाते थे। वह अपनी फिल्मों में काफी सकारात्मक संदेश देते थे और आज की फिल्मों में वह संदेश नहीं मिलते हैं। जगदीप ने कहा था कि उस वक्त फिल्म की बुनियाद होती थी, जो आज की फिल्मों में कहीं भी नहीं होती है और आज मुगले-ए-आजम, खिलौना, मंदिर इंडिया जैसी फिल्मों की जरूरत है।इन अल्फांजो के साथ महरूम अभिनेता ने आज के फिल्मी हकीकत और अपना दर्द बयां कर दिया था आखिर लोग उन्हें *सूरमा भोपाली" ऐसे ही थोड़ी कहते हैं ।

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