लौटना एक अकेले जीतू सोनी का.........

राजेन्द्र सदाशिव निखलांजे उर्फ छोटा राजन का भारतीय कानून के चंगुल में आना आसान नहीं था। लेकिन वह बुरी तरह उलझ गया था। दाऊद इब्राहिम उसके खून का प्यासा था। उसके गुर्गे किसी भी समय राजन को टपका सकते थे। इसलिए कहते हैं कि राजन ने ही भारतीय अफसरों से मिलकर अपनी सुरक्षित वापसी का रास्ता तय किया। एक शर्त रखी कि उसे मुंबई की बजाय दिल्ली की किसी जेल में रखा जाए, ताकि दाऊद की पकड़ से वह बच सके। माफिया डॉन के चलन वाले इन स्वदेशी और पाकिस्तानी संस्करणों का पुण्य स्मरण इसलिए किया कि इनके प्रदेश स्तरीय प्रतिनिधि जीतू सोनी भी नाटकीय तरीके से पुलिस के हत्थे चढ़ गए हैं।

कमलनाथ सरकार के समय गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे सोनी की प्रदेश में वापसी चौंकाने वाली बात नहीं है। यह तय था कि हालात अनुकूल होते ही उसे फिर घर की याद सताने लगेगी। हां, अब उसके 'मेरा घर' यानी माय होम के कई नियमित विजिटर्स को डर सता  रहा होगा, कि जीतू उनकी मेहमाननवाजी के शर्मनाक कच्चे चिट्ठे न खोल दे। तय है कि सोनी 'जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं' का अपवाद है। बदले के भाव से वह भरा हुआ है और उसके भीतर जो रसधार बह रही है, उसमें कई सफेदपोश बहते नजर आ सकते हैं। इसलिए समय की मांग है कि जीतू को तो उसके किए की सजा मिले। लेकिन जिन रसूखदारों का वो हनीट्रेप मामले में राजफाश करना चाहता था और जिन रसूखदारों ने नैतिक-अनैतिक के बीच का अंतर पार किया। क्या जीतू की गिरफ्तारी उन्हें भी कानून के दायरे में ला पाएगी। जीतू यकीनन पीत  पत्रकारिता का चेहरा है। उस पर कमलनाथ सरकार की गाज नहीं गिरती अगर वह शीर्ष पर बैठे अफसर को ब्लेकमैल करने का इरादा नहीं बनाता। हनीट्रेप के कुछ आरोपी जेल में हैं लेकिन जिन लोगों ने इस शहद जाल में फंस कर सरकार में अपने रसूख का फायदा उठा कर पता नहीं क्या-क्या काला पीला किया, वे सब अब तक बचे हुए हैं।  इनके राजफाश होना चाहिए, भले ही कुछ शर्म के मारे खुदकुशी कर लें। मजे लेने का शौक है तो सजा भुगतने का साहस भी होना चाहिए। या ऐसा करने से पहले नौ ही ग्रहों को बलवान करना चाहिए। लेकिन जीतू सोनी ने ब्लेकमैल के चक्कर में जिन-जिन चेहरों पर पड़ा हुआ नकाब नोच फेंका था, वे सभी सुरक्षित हैं। मजे से बड़ी पोजिशन और ताकत का आनंद उठा रहे हैं। न कमलनाथ ने उनके खिलाफ कार्यवाही का नैतिक साहस दिखा और न ही शिवराज सिंह चौहान इस दिशा में कुछ करने का साहस दिखा पाएंगे। इसलिए एक डर यह भी है कि एक मगरमच्छ की बलि देकर ऐसे बाकी आदमखोरों को बचाने का रास्ता न साफ कर दिया जाए।
मेरी जीतू के प्रति न सहानुभूति है और न ही उससे कोई बैर। मेरा साफ मानना है कि यदि वह गलत है तो उसे सजा मिले। किन्तु यह राय भी तो गलत नहीं कही जा सकती कि जो लोग, जिस तरह से उसके गलत में भागीदार रहे, उन पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए। जीतू पुलिस के लिए काम की चीज रहा। क्योंकि यह वही शख्स है, जिसने अंडरवर्ल्ड में अपने संबंधों की बदौलत राज्य की पुलिस को कई टिप्स दिए। उसकी अंडरवर्ल्ड तक पहुंच की पुलिस को जानकारी थी और एक तरह से उसने कई बार पुलिस के लिए मुखबीर का काम किया। इसलिए उसके काले धंधे इंदौरपुलिस के ही संरक्षण में फलते फूलते रहे। इस हाथ दे, उस हाथ ले वाले अंदाज में। शायद बुराई की अनिवार्यता वाले इस अघोषित सिद्धांत के तहत ही पुलिस उसकी कई हरकतों से आंखें मूंदी रहीं। राज्य में बार बाला की तर्ज पर माय होम में ठुमके लगाती लड़कियों वाले एकलौते ठिकाने का संचालन भी वह इसी वजह से करने में सफल रहा। अब जरा सोचिए कि इन सब गतिविधियों के लिए जीतू ने किस-किस स्तर पर लोगों को मैनेज किया होगा। उनसे कैसी-कैसी गलत मदद ली होगी। इन प्रभावशाली लोगों ने उसके असर में आकर कैसे कानून, सरकार और जनता के खिलाफ काम किए होंगे। क्या ऐसे लोगों को भी अब सामने नहीं लाया जाना चाहिए?
एक पके हुए राजनेता ने अपने दल की एक की महिला नेता के लिए मुझसे कहा था, 'यदि वह तमीज से चार ठुमके लगा दें, तो उसके पांव के पास कई दिग्गज चेहरे गिरे नजर आ जाएंगे।' आॅफ दि रिकॉर्ड की गयी इस बातचीत को जीतू से भी जोड़ा जा सकता है। कि यदि अब वह ठुमके लगा दे तो क्या होगा? मगर सवाल यह कि क्या उसे ऐसा करने की इजाजत दी जाएगी? छोटा राजन  की वापसी के बावजूद दाऊद इब्राहिम आज भी देश के कानून की पकड़ से बहुत दूर है। ऐसा प्रभावशाली माफिया बनने के लिए केवल गन उठाना ही जरूरी नहीं है। शासन या सियासत, दोनों में से किसी एक जगह रुसूख हासिल करके भी ऐसा सहज रूप से किया जा सकता है। अब इससे आगे और कुछ लिखने की जरूरत है क्या...! कलिंग युद्ध को लेकर सम्राट अशोक पर लिखी एक कविता की शुरूआत थी, 'एक अकेला अशोक लौट रहा था ...'  अशोक ने युद्ध त्यागा, बाकी राजाओं ने नहीं। इसीलिये उसके अकेले लौटने की बात कही गई। तो क्या जीतू का लौटना भी 'एक अकेला' वाले असर तक ही सीमित रह जाएगा?
..........................प्रकाश भटनागर

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनकी अपनी सटीक और बेबाक शैली मे लिखा ये विशेष लेख उनकी सहमति से रिपोर्टर एवं रिपोर्ट ने आपके लिए पब्लिश किया है।
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