गूगल प्रोजेक्ट नवलेखा कर रहा हिन्दी की दुर्गति और अपमान बारास्ता लिंक ट्रांसलेशन, शुरू से नहीं अभी किया बदलाव।
गूगल इनिशिएटिव नवलेखा जिसका उद्देश्य इन्टरनेट पर अंग्रेजी के मुकाबले हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के कन्टेन्ट उपलब्ध कराने हेतु पंजीकृत पब्लिशर्स को नेट पेज (तीन वर्ष के लिए निशुल्क) उपलब्ध कराना है।
ऐसा नवलेखा द्वारा प्रोजेक्ट लांचिंग के बाद से ही अपने हर इवेंट में बताया जाता रहा है।
यहां यह भी ध्यान रहे कि...... शुरुआत में नवलेखा द्वारा पब्लिशर्स को उनके पेज पर उपलब्ध कराई जा रही...... पीडीएफ फाइलो को आसानी से टेक्स्ट में कन्वर्ट करने की सुविधा को बहुत ही जोर शोर से, प्रचार प्रसार के साथ ही ट्रेनिंग प्रोग्रामों में हाईलाइट किया जा रहा था........ आज कोई उसका नामलेवा भी नहीं महज डेढ़ वर्ष के समय में ही।
नवलेखा के प्रतिनिधियों से चर्चाओं के दौरान ये स्पष्ट हुआ कि सितम्बर 2018 में शुरू यह "पहल नवलेखा" अभी सिर्फ उत्तर भारत उसमें भी हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही पब्लिशर्स के वेब पेज बनाने के लिए डोमेन नेम प्रोवाइड कर ट्रेनिंग के साथ तकनीकी सहायता दे रही है।
देश के अन्य हिस्सों तथा अन्य भाषाओं के लिए भी नवलेखा तैयार है। मतलब "हिन्दी के बाद अब अन्य भारतीय भाषाओं की बारी है।"
तकरीबन डेढ़ वर्ष से पब्लिशर्स को वेब पेज डोमेन नेम प्रोवाइड करते नवलेखा ने अपने पेज पर पोस्ट आर्टिकल के यूआरएल लिंक में विगत तीन माह पहले "भयंकर" बदलाव कर दिया पहले सिर्फ एक पंक्ति में कम्यूटर कोड वर्ड में लिंक होती मगर बदलाव के बाद हिन्दी में लिखे "आर्टिकल के हेडिंग" को "अंग्रेजी" में लिंक बना दिया गया है। और अंग्रेजी गूगल ट्रांसलेशन के जरिए शायद।
यहीं से इन्टरनेट पर नवलेखा द्वारा हिन्दी की दुर्गति शुरू हो गई ये बदली गई यूआरएल लिंक ही हिन्दी की दुर्गति का सबब बन गई। पब्लिशर्स द्वारा आपत्ति दर्ज कराने पर एक्सपेरिमेंट ही बताया जा रहा है।
ऐसा नवलेखा द्वारा प्रोजेक्ट लांचिंग के बाद से ही अपने हर इवेंट में बताया जाता रहा है।
नेट पर हिन्दी के विकास विस्तार के लिए इस प्रोजेक्ट की रूप रेखा बनाने वालो ने शायद बगैर पूर्ण पूर्व तैयारी, सर्वे एवं सर्वेक्षण के ही इसे लांच कर दिया और अब इस प्रोजेक्ट में निरंतर एक्सपेरिमेंट पर एक्सपेरिमेंट किये जा रहे हैं, इस वजह से हिन्दी का विकास विस्तार होने के बजाय उसकी दुर्गति और अपमान की सभांवना ज्यादा बन रही है।
मजाक बन रहा है नवलेखा के कारण हिन्दी का इन्टरनेट पर, आपत्तियां दर्ज होने लगी है सशक्त विरोध की सभांवना बन रही है। प्रोजेक्ट के जवाबदार एक्सपेरिमेंट चल रहा बता रहे हैं। यहां यह भी ध्यान रहे कि...... शुरुआत में नवलेखा द्वारा पब्लिशर्स को उनके पेज पर उपलब्ध कराई जा रही...... पीडीएफ फाइलो को आसानी से टेक्स्ट में कन्वर्ट करने की सुविधा को बहुत ही जोर शोर से, प्रचार प्रसार के साथ ही ट्रेनिंग प्रोग्रामों में हाईलाइट किया जा रहा था........ आज कोई उसका नामलेवा भी नहीं महज डेढ़ वर्ष के समय में ही।
नवलेखा के प्रतिनिधियों से चर्चाओं के दौरान ये स्पष्ट हुआ कि सितम्बर 2018 में शुरू यह "पहल नवलेखा" अभी सिर्फ उत्तर भारत उसमें भी हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही पब्लिशर्स के वेब पेज बनाने के लिए डोमेन नेम प्रोवाइड कर ट्रेनिंग के साथ तकनीकी सहायता दे रही है।
देश के अन्य हिस्सों तथा अन्य भाषाओं के लिए भी नवलेखा तैयार है। मतलब "हिन्दी के बाद अब अन्य भारतीय भाषाओं की बारी है।"
तकरीबन डेढ़ वर्ष से पब्लिशर्स को वेब पेज डोमेन नेम प्रोवाइड करते नवलेखा ने अपने पेज पर पोस्ट आर्टिकल के यूआरएल लिंक में विगत तीन माह पहले "भयंकर" बदलाव कर दिया पहले सिर्फ एक पंक्ति में कम्यूटर कोड वर्ड में लिंक होती मगर बदलाव के बाद हिन्दी में लिखे "आर्टिकल के हेडिंग" को "अंग्रेजी" में लिंक बना दिया गया है। और अंग्रेजी गूगल ट्रांसलेशन के जरिए शायद।
यहीं से इन्टरनेट पर नवलेखा द्वारा हिन्दी की दुर्गति शुरू हो गई ये बदली गई यूआरएल लिंक ही हिन्दी की दुर्गति का सबब बन गई। पब्लिशर्स द्वारा आपत्ति दर्ज कराने पर एक्सपेरिमेंट ही बताया जा रहा है।
( नवलेखा पेज आर्टिकल यूआरएल लिंक द्वारा किस तरह हिन्दी का अपमान और दुर्गति हो रही देखिये विडियो में इस 👇लिंक पर क्लिक कर ।)
पब्लिशर्स ही नहीं आम हिन्दी प्रेमी नवलेखा की इस करीब तीन माह पूर्व की पहल से दुखी है, उनमें आक्रोश भी है इन्तजार है नवलेखा अपने "एक्सपेरिमेंट" से शायद इसका कुछ समाधान शीघ्र कर दे और करीब तीन माह पहले की ही स्थिति ले आए जिससे इन्टरनेट पर हो रही हिन्दी की दुर्गति और अपमान बन्द हो कर नवलेखा अपने उद्देश्य में सफल हो।


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