दशा माता - पीपल की पूजा कर नल दमयन्ती की कथा सुन दशावेल धारण की जाती है।
फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी को होती है दशा माता की पूजा ।।
पीपल की पूजा कर दशावेल धारण की जाती है।
नल दमयन्ती की कथा प्रमुख होती है ।
पीपल की छाल को सोना मान चट्टी अंगुली से खुरेचा जाता है ।
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देश के विभिन्न प्रान्तों एवँ अंचलों में होली से दसवें दिन दशामाता का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। दशा माता का पूजन होली के दूसरे दिन अर्थात फाल्गुन कृष्ण 1 से ही प्रारंभ हो जाता है जब महिलाएँ स्नान कर के दशा माता के थान पर धूप दीपक और घी गुड़ का प्रसाद एवं गेहूँ आदि अनाज के आखे अर्पित करके दशा माता की कथा करती/सुनती है।
दशा माता का मुख्य त्यौहार फाल्गुन कृष्ण दशमी को मनाया जाता है । इस दिन महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है तथा पीपल के वृक्ष जिसे ब्रह्म देव सदृश माना जाता है का पूजन कर दशामाता की कथा सुनी जाती है।
इस दिन घरों में पकवान बनाए जाते हैं और दशामाता व अन्य देवी देवताओं को भोग लगाकर पूरे परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
मध्यप्रदेश राजस्थान में इस त्यौहार का अत्यंत महत्व है। इस दिन पीपल वृक्षस्थलों पर तड़के से ही पूरी तरह सज धज कर पूजा करने वाली स्त्रियों की भीड़ बनी रहती है जो अपराह्न तक रहती है।
इस अवसर पर लाखों महिलाएँ अपने सुहाग की रक्षा और घर-परिवार की खुशहाली की कामना से पूरी श्रद्धा के साथ दशामाता के नियमों का पालन करते हुए व्रत पूजा करती है।
पूजा समाप्ति के पश्चात महिलाओं द्वारा दशावेल धारण की जाती है। दशावेल हल्दी से रंगा हुआ पीले रंग का एक धागा होता है जिसमें दस गांठे होती है।
पूजा के बाद पीपल की छाल को सोना मानकर कनिष्ठा या चट्टी अंगुली से खुरेचकर घर लाया जाता है और अलमारी, तिजोरी में रखा जाता है।
पीपल की पूजा कर दशावेल धारण की जाती है।
नल दमयन्ती की कथा प्रमुख होती है ।
पीपल की छाल को सोना मान चट्टी अंगुली से खुरेचा जाता है ।
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देश के विभिन्न प्रान्तों एवँ अंचलों में होली से दसवें दिन दशामाता का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। दशा माता का पूजन होली के दूसरे दिन अर्थात फाल्गुन कृष्ण 1 से ही प्रारंभ हो जाता है जब महिलाएँ स्नान कर के दशा माता के थान पर धूप दीपक और घी गुड़ का प्रसाद एवं गेहूँ आदि अनाज के आखे अर्पित करके दशा माता की कथा करती/सुनती है।
दशा माता का मुख्य त्यौहार फाल्गुन कृष्ण दशमी को मनाया जाता है । इस दिन महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है तथा पीपल के वृक्ष जिसे ब्रह्म देव सदृश माना जाता है का पूजन कर दशामाता की कथा सुनी जाती है।
इस दिन घरों में पकवान बनाए जाते हैं और दशामाता व अन्य देवी देवताओं को भोग लगाकर पूरे परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
मध्यप्रदेश राजस्थान में इस त्यौहार का अत्यंत महत्व है। इस दिन पीपल वृक्षस्थलों पर तड़के से ही पूरी तरह सज धज कर पूजा करने वाली स्त्रियों की भीड़ बनी रहती है जो अपराह्न तक रहती है।
इस अवसर पर लाखों महिलाएँ अपने सुहाग की रक्षा और घर-परिवार की खुशहाली की कामना से पूरी श्रद्धा के साथ दशामाता के नियमों का पालन करते हुए व्रत पूजा करती है।
पूजा समाप्ति के पश्चात महिलाओं द्वारा दशावेल धारण की जाती है। दशावेल हल्दी से रंगा हुआ पीले रंग का एक धागा होता है जिसमें दस गांठे होती है।
पूजा के बाद पीपल की छाल को सोना मानकर कनिष्ठा या चट्टी अंगुली से खुरेचकर घर लाया जाता है और अलमारी, तिजोरी में रखा जाता है।


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