भारतीय मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोकर फर्जी स्टोरी एवं गलत प्रचार करने में लगा - ऐडलमेन ट्रस्ट। पत्रकार बने राजनीतिक दलों के पीआर एजेंट।
भारतीय मीडिया को लेकर ‘Edelman’ कंपनी द्वारा हाल ही में अपनी सर्वे रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय मीडिया अपनी विश्वसनीयता (credibility) पूरी तरह खो चुका है और यह फर्जी स्टोरी (fake stories) एवं गलत प्रचार (false propaganda) करने में लगा हुआ है।
हाल के वर्षों की बात करें तो मीडिया पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी है, जिसके पास जिम्मेदारी और मूल्यों (ethics) का सर्वथा अभाव है।
मीडिया बिजनेस के क्षेत्र में 20 साल से ज्यादा समय से सक्रिय और 38 देशों में अपना बिजनेस करने वाली कंपनी ‘Eldmen trust’ द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, सोशल मीडिया आने के बाद से मीडिया का पाखंड (hypocrisy) और उजागर हो गया है। ऐसे लोग जो खुद को पत्रकार कहते थे, वह मुनाफे के लिए कुछ राजनीतिक दलों के पीआर एजेंट बनकर रह गए हैं।
सर्वे में बताया गया है कि मीडिया और एनजीओ पर लोगों का भरोसा हमेशा कम रहा है और ऐसे संस्थानो का उद्देश्य और विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है।
सर्वे में बताया गया है, विभिन्न देशों के अधिकांश लोगों ने मीडिया रिपोर्ट्स को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर की है। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि मीडिया कंटेंट पर लोग भरोसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश का मानना है कि यह सब निहित स्वार्थों अथवा टीआरपी जुटाने के लिए किया जा रहा है। इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर सभी जगह मीडिया की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है।
अपनी रिपोर्ट में रिचर्ड एडलमैन (Richard Edelman) ने कहा है कि आजकल लोग मीडिया को कॉरपोरेट मशीन और कुछ खास वर्ग के लोगों तक सीमित ही समझते हैं। उनका कहना है कि कभी लोगों के विचारों और मजलूमों की आवाज बना मीडिया आज अमीर और प्रभाशाली लोगों से प्रभावित है और इससे लोगों का मीडिया के प्रति भरोसा कम हुआ है।
यह सर्वे कुल 28 देशों में किया गया, जिनमें से 17 ऐसे देश थे जिन्होंने मीडिया पर अविश्वास (mistrust) जताया।
तथ्यों को देखें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारतीय पत्रकारों ने किस तरह बेकार के मुद्दों (silly issues) को उठाया और लोगों के बीच हलचल (panic) फैलाने का काम किया।
मीडिया द्वारा उठाए गए असहिष्णुता (Intolerance) के मुद्दे से पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि कितनी खराब हुई थी।
कुछ लोगों के बीच यह मुद्दा इसलिए उछाला गया था क्योंकि कुछ लोगों को यह रास नहीं आया था कि मोदी चुनाव जीत गए और वे देश को सांप्रदायिकता का रंग देना चाहते थे।
हाल के वर्षों की बात करें तो मीडिया पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी है, जिसके पास जिम्मेदारी और मूल्यों (ethics) का सर्वथा अभाव है।
मीडिया बिजनेस के क्षेत्र में 20 साल से ज्यादा समय से सक्रिय और 38 देशों में अपना बिजनेस करने वाली कंपनी ‘Eldmen trust’ द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, सोशल मीडिया आने के बाद से मीडिया का पाखंड (hypocrisy) और उजागर हो गया है। ऐसे लोग जो खुद को पत्रकार कहते थे, वह मुनाफे के लिए कुछ राजनीतिक दलों के पीआर एजेंट बनकर रह गए हैं।
सर्वे में बताया गया है कि मीडिया और एनजीओ पर लोगों का भरोसा हमेशा कम रहा है और ऐसे संस्थानो का उद्देश्य और विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है।
सर्वे में बताया गया है, विभिन्न देशों के अधिकांश लोगों ने मीडिया रिपोर्ट्स को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर की है। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि मीडिया कंटेंट पर लोग भरोसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश का मानना है कि यह सब निहित स्वार्थों अथवा टीआरपी जुटाने के लिए किया जा रहा है। इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर सभी जगह मीडिया की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है।
अपनी रिपोर्ट में रिचर्ड एडलमैन (Richard Edelman) ने कहा है कि आजकल लोग मीडिया को कॉरपोरेट मशीन और कुछ खास वर्ग के लोगों तक सीमित ही समझते हैं। उनका कहना है कि कभी लोगों के विचारों और मजलूमों की आवाज बना मीडिया आज अमीर और प्रभाशाली लोगों से प्रभावित है और इससे लोगों का मीडिया के प्रति भरोसा कम हुआ है।
यह सर्वे कुल 28 देशों में किया गया, जिनमें से 17 ऐसे देश थे जिन्होंने मीडिया पर अविश्वास (mistrust) जताया।
तथ्यों को देखें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारतीय पत्रकारों ने किस तरह बेकार के मुद्दों (silly issues) को उठाया और लोगों के बीच हलचल (panic) फैलाने का काम किया।
मीडिया द्वारा उठाए गए असहिष्णुता (Intolerance) के मुद्दे से पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि कितनी खराब हुई थी।
कुछ लोगों के बीच यह मुद्दा इसलिए उछाला गया था क्योंकि कुछ लोगों को यह रास नहीं आया था कि मोदी चुनाव जीत गए और वे देश को सांप्रदायिकता का रंग देना चाहते थे।

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