गत एक वर्ष से पुणे जेल में बंद एडवोकेट सुधा भारद्वाज की रिहाई के लिए सोशल साइट्स पर मुहीम।


मानवाधिकारवादी अधिवक्ता सुधा भारद्वाज का आज उनका 58 वां जन्मदिन है। वे एक साल से पुणे जेल में हैं। 

बिना किसी सबूत के जेल में डाल देना तानाशाही के अलावा और कुछ नहीं है। जुर्म इतना है कि सुधाजी ने सुविधाओं वाला जीवन छोड़कर छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए आजीवन काम किया है।
यह सर्वविदित है कि वे अहिंसावादी हैं। हां ,राज्य हिंसा करने वाले छत्तीसगढ़ के अधिकारियों के जुल्म ज्यादतियों के खिलाफ न्यायालय में और सड़कों पर  आवाज़ बुलंद करती रही  है। 
लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित मानव अधिकार संगठन पी यू सी एल का नेतृत्व करती है। गरीब आदिवासियों मज़दूर के जुल्म ज़्यादती के खिलाफ कोर्ट और कोर्ट के बाहर लड़ाई लड़ने वालों के लिए अर्बम नक्सल शब्द इस सरकार ने ईजाद किया है l और नक्सली घोषित कर दमन करने का रास्ता तानाशाही पूर्ण है।  लोकतांत्रिक अधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है।
सुधा जी आप भले ही जेल में हों देश के लाखों परिवर्तनवादी आपसे प्रेरणा लेते है। जब अंग्रेज़ी हुकूमत जुल्म करती थी ,स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जेल में डालती थी तब उसको लगता था कि वह अनंतलकाल तक शासन कर सकेंगे लेकिन जनता ने उनको उखाड़ फेंका। कितनी लंबी लंबी सजाएं देते थे परंतु बीच में ही छोड़ना पड़ता था।
आप भी जेल से रिहा होंगी ,हम सब आपके साथ है । भारत  मे कोई जेल ऐसी नहीं बनी है जो आप जैसी क्रांतिकारियों को लंबे समय तक जेल में रख सकेगी

         जेल के ताले टूटेंगे
       क्रांतिकारी साथी छूटेंगे
     * सुधा भारद्वाज जिन्दावाद *
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एडवोकेट सुधा भारद्वाज के 58 वे जन्मदिन के मौके पर सोशल साइट्स पर इस तरह की पोस्टों के साथ उनकी रिहाई के लिए मुहीम की शुरुआत की गई। उक्त पंक्तियाँ (आलेख) यहां हमने जस का तस बगैर एडिट किये बस कलर किया है शब्दों को 

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