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चमत्कार.....या... माँ का आशीर्वाद....जंवांरे बोये नही दूब फल फूल कर बड़ रही।

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जंवांरे बोये नही दूब फल फूल कर बड़ रही। चैत्र नवरात्रि में रामायण का नह्मपारायण पाठ करती थी माँ.... विगत आठ सालों से सशरीर माँ की अनुपस्थिती की कमी के चलते उनके उस सकल्पं नियम को उनकी ही आज्ञा उनके ही आशीर्वाद से आत्म स्वरूप में उन्हे अपने समक्ष महसूस करते मैंं उसी श्रद्धा भक्ति भाव से निरंतरता के साथ अखंडता देने का प्रयास कर रहा हूं.... और माँ के आशीर्वाद बल के साथ इस चैत्र नवरात्रि में भी रामायण के नह्मपारायण को मैं निर्विध्न सम्पन्न कर पाया.... बीच में कई बार हिम्मत टूटी भी....बार बार माँ की याद आंखो से बहने लगती... रामायण के पारायण की लय टूटती.. परन्तु सामनें तस्वीर में पोथी पढ़ते वो फिर सुर साध कर सर पर अपना अदृश्य हाथ फेेरने लगती... और ऐसे ही मानस गान गाते गाते उस दिन का विश्राम आ जाता....ऐसे ही हजारों बार माँ के हाथ की फिरन सर पर महसूस करते नौ दिन पूर्ण हुए...साथ ही नह्मपारायण भी सम्पूर्ण हुआ... पूर्णाहुति की आरती के बाद जब आरम्भ में वरूण देव के आव्हान के साथ ऊनके स्वरूप में स्थापित कलश को देखा तो आश्चर्य के साथ पुनः अश्रुधारा बह निकली... कलश की दूब हरी हरी हो बध (बडी़ हो) गई थी.....