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अभ्युदय में चौसठ कलाओं का जीवंत प्रदर्शन करने वाले श्री उमिया पाटीदार स्कूल के मेधावी विद्यार्थी।

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भारतीय शिक्षा क्रम का क्षेत्र सनातन काल से ही बहुत व्यापक रहा है शिक्षा में कलाओं की शिक्षा सर्वोपरी थी। विभिन्न कलाओं के सम्बन्ध में पुराणों सहित रामायण, महाभारत, जैसे कई ग्रन्थों में विस्तार से जानकारी दी गई है  परंतु शुक्राचार्य जी द्वारा रचित 'नीतिसार' नामक ग्रन्थ के चौथे अध्याय के तीसरे प्रकरण में इसका संक्षिप्त में ही सम्पूर्ण वर्णन मिलता है।  नीतिसार के अनुसार कलाएँ अनन्त हैं, सबके नामकरण रख बताना संभव नहीं है परंतु उनमें से 64 कलाएं जीवन में आवश्यक है और इनमें निपुण न सही पर इनकी जानकारी सभी को होना चाहिए । भगवान् श्री कृष्ण 64 कला में निपुण थे इसीलिए उन्हें पूर्ण पुरुषोत्तम भी माना जाता है। कला का लक्षण बतलाते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिसको एक मूक (गूंगा) व्यक्ति जो  वर्णोच्चारण भी नहीं कर सकता हैं वह भी कर सके, वह ही 'कला' है। 'शिवतत्त्वरत्नाकर' में मुख्य-मुख्य 64 कलाओं का नामनिर्देश किया गया है और उन्ही चौंसठ कलाओं से श्री उमिया पाटीदार स्कूल के विद्यार्थियों ने सहजता से हमारा परिचित करा दिया है तो आइए पहले श्री उमिया पाटीदार स्कूल के 64 कलाओं में निपु...